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Showing posts from May, 2016

A leaf from the past ||

एक याद बीते दिनों की  ||   करीब 6 घंटे की कमरतोड़ बस की यात्रा के बाद बहराइच पहुँचा , बस अड्डे पर ही एक दुकान मे चाय पी और हाथ रिक्शा ले चल पड़ा अपने जीवन के नये अध्याय की तरफ. सड़क तो नही पर हाँ तंग गलियाँ कह सकता हूँ जिनसे होकर मेरा रिक्शा चला पड़ा | करीब 15 मिनट की मशक्कत के बाद टीबी हस्पताल चौराहे पर जाम मे अटक गया | अब रास्ता तो पता नहीं था और IDBI बॅंक तो भी कुछ ही महीने हुए थे सो कोई बता भी नहीं पा रहा था | चूँकि पता टीबी हस्पताल के सामने का था सो रिक्शा छोड़ , बैग उठाकर पैदल ही चल पड़ा |   सड़क पार करते ही दाईं तरफ एक दाँत चिकित्सालय है , और उसके बगल एक मोबाइल रीचार्ज की दुकान हुआ करती थी ( अब नही पता है या नहीं) | पहले दाँत वाले से पूछा , निराशा हाथ लगी , फिर जब मोबाइल वाले से पूछा तो बगल मे खड़े एक भाई ने बड़ी कौतूहलता से देखा |   मैने जैसे IDBI का नाम लिया , उसने बात काट दी , अरे सर कुछ काम है क्या बॅंक मे ? उसने छूटते ही अपना जाल फेंका , अकाउंट खोलना है क्या , बताइए ? मुझे समझ आ गया था वो सेल्स टीम मे होगा , ऐसा ही होता है सेल्स वालों के साथ |   खै

असली समाजवाद क्या है ?

एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ , हमारे अगल बगल भी इस कहानी के पात्र मिल जाएंगे अगर आप ध्यान से देखेंगे -   " एक बार एक भिखारी मेरे पास भीख मांगता हुआ आया, "भैया बाबू साहब हुई जाय , कुछ पैसा दय द बाबू " । मेरे पास खुले सिक्के नहीं थे सो झोले में रख सेव बढ़ाते हुए मैंने कहा , पैसा नहीं यही ले लो । भिखारी ने मुंह सिकोडा ," न भैया खाली पैसा दै द" ।  जाने क्यों बरबस ही ख्याल आया की नगद के चक्कर में क्यों है पता किया जाए , मैंने उसे १० रूपये का नोट दिया और वो खुश हो कर आगे बढ़ गया । थोड़ा उसके पीछे चल कर पता चला , वो सीधा पान की दूकान पर गया और मस्त पान-मसाला खरीदा और पुड़िया फाड़ मुंह में मसाला भर लिया "।    उस दिन मैंने कसम खाई की अब कभी भीख नहीं दूंगा , अब भी नहीं देता हूँ ।    खैर कहानी खत्म पैसा हज़म , कुछ ऐसा ही होता है हमारे राजनीति में , है ना ? "कठिन समय और असीमित शक्ति , किसी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी कसौटी है । बढ़िया व्यक्तित्व बेहतर होता जाता है और बद , समय के बदतर होता जाता है ।" इतिहास हमें कई उदहारण देता है | बहुत पुराने