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असली समाजवाद क्या है ?

एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ , हमारे अगल बगल भी इस कहानी के पात्र मिल जाएंगे अगर आप ध्यान से देखेंगे -
 
" एक बार एक भिखारी मेरे पास भीख मांगता हुआ आया, "भैया बाबू साहब हुई जाय , कुछ पैसा दय द बाबू " । मेरे पास खुले सिक्के नहीं थे सो झोले में रख सेव बढ़ाते हुए मैंने कहा , पैसा नहीं यही ले लो । भिखारी ने मुंह सिकोडा ," न भैया खाली पैसा दै द" । 
जाने क्यों बरबस ही ख्याल आया की नगद के चक्कर में क्यों है पता किया जाए , मैंने उसे १० रूपये का नोट दिया और वो खुश हो कर आगे बढ़ गया । थोड़ा उसके पीछे चल कर पता चला , वो सीधा पान की दूकान पर गया और मस्त पान-मसाला खरीदा और पुड़िया फाड़ मुंह में मसाला भर लिया "। 
 
उस दिन मैंने कसम खाई की अब कभी भीख नहीं दूंगा , अब भी नहीं देता हूँ । 
 
खैर कहानी खत्म पैसा हज़म , कुछ ऐसा ही होता है हमारे राजनीति में , है ना ?
"कठिन समय और असीमित शक्ति , किसी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी कसौटी है ।
बढ़िया व्यक्तित्व बेहतर होता जाता है और बद , समय के बदतर होता जाता है ।"
इतिहास हमें कई उदहारण देता है | बहुत पुराने समय में चलें तो दुर्योधन , रावण मिलते हैं , थोड़ा और आगे आते हैं तो सिकंदर , चंगेज़ , नादिर , अब्दाली मिलते हैं, और थोड़ा आगे बढ़ने पर हिटलर , स्टॅलिन , चर्चिल जैसे निरंकुश शासक मिल जांएंगे , अब अगर इससे भी आगे बढ़ने की कोशिश करें तो इंदिरा , संजय गांधी जैसे नेता भी दिखते हैं जो अपने आगे किसी को आने नहीं देते थे । इन सबने अपने शासनकाल में अनेको पाप किये , लेकिन तब न ही जनता जागरूक थी , न ही मीडिया सशक्त थी इसलिए इनके कर्म समय के साथ उजागर हुए ।
 
"लेकिन अब भी ऐसे कुछ इलाके हैं जहां शासन अपना मौलिक कर्त्तव्य भूल कर सिर्फ अपने - अपनों के भरण- पोषण में व्यस्त है । हम इन्हे इक्कीसवी सदी के अंधेर नगरी का दर्जा दे सकते हैं "
अब अगर 2016 में हम देखें तो अंधेर नगरी का सबसे बड़ा उदहारण है उत्तर प्रदेश । एक ऐसा राज्य जिसने देश को सोने की चिड़िया की परिभाषा दी , जिसने भारत के भाग्य निर्माण हेतु कई प्रधानमंत्री दिए , उसी उत्तर प्रदेश में आज एक संवेदनहीन सरकार है जो समाजवाद के नाम पर उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य बन कर सत्ता पर आसीन है ।
 
कई मुद्दे हैं उठाने को , लेकिन आज सिर्फ बुंदेलखंड के दुर्भाग्य पर ही चर्चा करूँगा ।
 
वैसे तो बहुत ही समृद्ध इतिहास है बुंदेलों का लेकिन धरती का सूखापन सारी समृद्धि को मुंह चिढ़ाता है । जब सूखे की मार अपने तीसरे साल में प्रवेश कर आई हो तो पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक है । लेकिन लगता है राज्य सरकार किसी और बुंदेलखंड को जानती है । लगता है साइकिल के निशान वाले मालिक लोग , साइकिल पर चलने वाले गरीबो से बहुत दूर हो चुकी है ।
 
बुंदेलखंड में सूखा पड़ा है , किसान मर रहे हैं , पीने का पानी नहीं है , सारे अखबार बुंदेलखंड की त्रासदी का सच बयान कर रहे हैं लेकिन समाजवादी सरकार अभी भी जमीनी हकीकत को मानने से इंकार कर रही है । 
 
जब केंद्र ने पानी भेजने की बात की तो राज्य सरकार ने साफ़ मना कर दिया । उनके मंत्री भी सरकार के बचाव में डट गए हैं , कुछ भी बोल रहे हैं । 
 
 
शिवपाल यादव का कहना है "बहुत पानी है हमारे पास , हमें किसी के मदद की जरुरत नहीं" , अजी बिलकुल सही कहा , पानी की कमी थोड़े ही है तुम्हारे फार्म हाउस में या सैफई में । यहाँ पर बात हो रही है बुंदेलखंड के गाँवों की , जो शायद तुमने कभी न देखे हैं । 
 
ये भारत के प्रतिष्ठित अख़बार वाले तो तुमसे जलते हैं इसलिए खबर छापते हैं की 3000 से ज्यादा किसान मर चुके हैं बुंदेलखंड में पिछले 12 -13 साल में । वो तो शौकिया मर जाते होंगे किसी के प्यार में , हैं ना समाजवाद के ज्ञाता ?

नीचे "द हिन्दू" का लिंक है , मार्मिक वर्णन है बुंदेलखंड के  दुर्भाग्य का पढ़िए और फिर सोचिये शिवपाल जैसो की मानसिक हालत किस स्तर पर है -
 
 
अब देखते हैं समाजवादी सरकार क्या कर रही है , अखिलेश बड़ी बड़ी बातों में यकीन रखते हैं और फोटोशॉप  भरोसा करते है । उनके योजना जमीन पर पहुँचने के पहले ही ट्विटर , फेसबुक और समाचार पत्रों में बड़े बड़े विज्ञापन आ चुके होते हैं ।
 
चलिए नजर डालते हैं मुख्यमंत्री के कुछ ट्वीटों पर । इनके ट्वीटों से पता तो चलता है की सूखा पड़ा है , युद्धस्तर पर प्रसाशन लगा हुआ है । चलो माना तो की सूखा पड़ा भी है , साधुवाद ।
 


अब ऊपर दिए गए विज्ञापन ( माफ़ करियेगा ये विज्ञापन ज्यादा लग रहा है मुझे ) के अनुसार करीब 70000 /- एक इंडिया मार्का नल पर खर्च होंगे , अच्छा जी , एक तो जमीन  में पानी नहीं इसलिए पैसे पानी की तरह बहा रहे   ? उम्मीद है की बरसात से पहले ये नल गड़ जायेंगे , अगर नहीं गड़े तो यकीं मानिए कागज़ के नल खूब लगते हैं उत्तर प्रदेश में ।
 
ओह पानी के टैंकर भी खरीदे जाएंगे , वो भी करीब 10 करोड़ में , वो भी 440 ? यानि एक टैंकर आएगा करीब 2,27,000 में , लगा ना 440 वोल्ट का झटका ?

अब देखते हैं एक और ट्वीट , इसमें बिफोर और आफ्टर भी दिखाया गया है , बड़ा मजेदार चित्र है । तालाब खुदा नहीं लेकिन छापने वाले को पता है कैसा लगेगा । खैर विचार अच्छा है । 
 
मैं सरकार के इस कदम का साथ देता हूँ और सच कहूं तो अगर आधे तालाब भी खोद दे तो बुंदेलखंड सूखे से आजाद हो जाएगा और इतिहास अखिलेश यादव को याद रखेगा । 




चलो कोई बात नहीं , जब जागो तभी सवेरा ।  सवेरा तब और ख़ास बन जाता है जब गरीब के अधरों पर मुस्कराहट हो । 
 
अब चलते हैं थोड़ा और आगे ये देखने के लिए की समाजवादी सरकार कर क्या रही है । तालाब खुदवाना , नल लगवाना तो भविष्य की तैयारी है , जब सूखा पड़ चुका तो तात्कालिक राहत के क्या हाल है?
 
अभी कुछ दिनों पहले तक समाजवाद के रक्षक , केंद्र की सरकार को निशाने  पर ले रहे थे की केंद्र सरकार  कुछ नहीं कर रही , आँख मूंदे हुए है , मोदी जी कुछ नहीं कर रहे इत्यादि इत्यादि । 
 
इसी बीच रेल मंत्री ने घोषणा कर दी की "वाटर ट्रैन" बुंदेलखंड के लिए रवाना हो गई है , बस फिर क्या था , समाजवाद खतरे में पड़ गया , लखनऊ का सिंहासन डोल उठा , साइकिल की हवा निकल गई । उसके बाद जो हुआ बड़ा मजेदार है । 
 
अचानक सारे तालाबों में पानी आ गया , सूखे कुँए लबलबा उठे और सरकारी तंत्र दौड़-दौड़ कर पानी वाले तालाबों की फोटो भेजने में लग गया ।  यकीन ना आये तो देख लीजिए मुख्यमंत्री जी के ट्विटर अकाउंट पर । 
 
मुख्यमंत्री जी भी ट्विटर के सहारे जनता को बतलाने लगे की भाई पानी बहुत है हमारे पास बस टैंकर नहीं है । मैंने पहले ही बताया की सवा दो लाख का एक टैंकर आएगा , इसलिए  केंद्र सरकार से १०००० टैंकर मांग लिया । अब थोड़ा गणित लगाया जाए तो मिलेगा की २०० करोड़ मांग लिए गए हैं, अब केंद्र सरकार टंकी पहुंचाने से रही , देगी तो नगद राशि ही । 
 
नीचे देखिये कितनी कारगर पहल है समाजवाद की , टैंकर भेजेगा केंद्र , पानी पहले से है और जब तक टैंकर आएँगे तब तक बरसात आ जाएगी । अंग्रेजी में कहते है न "  रीड बिटवीन द लाइन्स " , वही करिये । 
 
 
 
क्या आपको पता है की पिछले साल उत्तर प्रदेश के ७५ में से ५० जिले सूखाग्रस्त घोषित किये गए थे , हर बार सरकार केंद्र के आगे झोली फैला देती है राहत राशि के लिए । राहत राशि जाती किस कुँए में है , भगवान ही जाने । सूखा राहत राशि भी होती है यही कोई २ या ३ हजार करोड़ , कभी कभी तो और भी ज्यादा । 
 
अरे हाँ , ऊपर की कहानी का उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार से कोई रिश्ता-नाता नहीं है भाई, ज्यादा धयान न दें । 
जब इस लेख के लिए पढाई कर रहा था तभी एक तस्वीर मिली , ऐसा लगा जैसे मूर्ति कह रही हो -  
 " अब नौटंकी बंद करो और जाओ , गरीबो-मजबूरों के लिए काम करो ,
क्योकि यही तुम्हारा धर्म है , यही कर्त्तव्य है और यही असली समाजवाद है" ॥ 
 
 
मुझे नहीं पता की कौन हारेगा इस खींच-तान में , बुंदेलखंड का गरीब या फिर समाजवाद ? दिल से तो यही चाहता हूँ की "सर्वे भवन्तु सुखिनः " का पालन हो , सब सुखी हों, सूखा पड़ने पर भी !
 
आप क्या कहते हैं, बताइयेगा ज़रूर ।
 
पढ़ने के लिए धन्यवाद । 
 
 
 

Comments

  1. समाजवाद के मायने बदल गये हैं साहब!!! बल्कि आज के दौर में राजनीति इतनी बडी हो गई है कि कोई भी वाद उसके सामने बौना प्रतित होता है।

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