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कब शुरू कर रहे हैं आप अपना व्यापार ?

मैने पुछा - तो  कब शुरू कर रहे हैं आप अपना व्यापार ?  उत्तर - क्या कहा, अपना व्यापार ? मैंने पासा फेंका - हाँ भाई सुना है, इस मोदी सरकार ने सब ठीक कर दिया है और अब अपने देश में व्यापार खोलना और करना आसान हो गया है | इसलिए पूछ रहा हूँ ,  कब शुरू कर रहे हैं आप अपना व्यापार ? उत्तर - क्या मजाक करते हो , जो दिखता है वो है नहीं और जो है ही नहीं उसको वो दिखा रहें हैं सपने की तरह |  हाँ तो आते हैं मुंगेरी लाल के सपने की तरफ,   व्यापार करने के लिए मुफीद जगहों की हाल ही में आई नई सूचि से पता चला की भारत ने भारी छलांग लगाई है.  बस फिर क्या था, मोदी सरकार ने तुरंत इस खबर को लपक लिए और सारा का सारा श्रेय अपने प्रमुख के खाते में डाल दिया ।  दरअसल मोदी सरकार उस सरकारी महकमे की तरह हो गई है जिसमे काम कोई भी करे, अंत में श्रेय बड़े अधिकारी को ही जाता है और वैसे भी मोदी-शाह में भाजपा ( द पार्टी विद डिफरेंस) को पलट के रख दिया है ।   आज तो भाजपा बैतरणी हो गई है , कोई कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो , भाजपा की गोदी में आते है सर्वशुद्ध हो जाता है । अब तो हालत देख के यही लगता है की ' राम तेरी गं

Independence - Half or Full ?

स्वंतंत्रता - अधूरी या पूरी ? *********************************************************************************** ॥ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥  जब स्वयं नारायणावतार भगवान् श्रीराम ने ये कहा था तब महाजनपद होते थे और तथाकथित अखंड भारत हुआ करता था जिसे कहीं इतिहासकारों ने आर्यावर्त का नाम दिया । तब और अब में हज़ार वर्षों का बड़ा अंतर है और मानव मूल्यों में भी अनंत परिवर्तन आया हैं । आज भौतिक मूल्य , मानव-मूल्य भर भारी पड़ चूका है और सब सुख-दुःख धन के परिपेक्ष में देखा जाता है । यदि धन लोलुपता न होती तो कोई भी हिन्दू मुस्लमान आक्रमणकारियों का साथ न देता , यही धन-वैभव का लोभ ना होता तो राजे-राजवाड़े अंग्रेज़ो के तलवे ना चाट रहे होते । एक बार एक वार्ता के दौरान मुद्दा उठा की कौन से राज-घराने अंग्रेज़ो के साथ थे , क्या कोई लिखित साक्ष्य है हमारे पास ? एक वरिष्ठ इतिहासकार ने साधारण शब्दो में उत्तर दिया - "भारत भ्रमण पर निकल जाइये , जहाँ कहीं महल - किले साबूत मिलें , उनका वैभव बरक़रार हो , बस समझ जाइयेगा वो अंग्रेज़ो के साथ थे ।" इतिहासकारो में एक कहावत मशहू

India , Culture and Pornography

India , Culture and Pornography Part One: The Philosophy of Khajuraho  It’s been around 10 years; this was my first visit to Khajuraho. It was a shocking experience to see the statues, erotic expressions. I was wondering, WTF, in a temple how can these images be there? Intrigued with questions in my mind, I sat below a tree and was contemplating the motive behind such concept in a temple. An old man, looked a Seer, probably was tired therefore sat beside me under the shade. -"Hello", he looked at me and said. " Hi Sir, I responded with a smile. - So what are you doing here? I came to see temples as part of my History research activity. - So what did you find here, anything special, anything mysterious? Not really, but yes, these are not just temples, these are something else. No words to explain but I will not keep them under category of temples. - Hmmm, he took a pause and said, so you did not understand the core logic of erotic structu