Skip to main content

Posts

Showing posts from 2016

Independence - Half or Full ?

स्वंतंत्रता - अधूरी या पूरी ? *********************************************************************************** ॥ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥  जब स्वयं नारायणावतार भगवान् श्रीराम ने ये कहा था तब महाजनपद होते थे और तथाकथित अखंड भारत हुआ करता था जिसे कहीं इतिहासकारों ने आर्यावर्त का नाम दिया । तब और अब में हज़ार वर्षों का बड़ा अंतर है और मानव मूल्यों में भी अनंत परिवर्तन आया हैं । आज भौतिक मूल्य , मानव-मूल्य भर भारी पड़ चूका है और सब सुख-दुःख धन के परिपेक्ष में देखा जाता है । यदि धन लोलुपता न होती तो कोई भी हिन्दू मुस्लमान आक्रमणकारियों का साथ न देता , यही धन-वैभव का लोभ ना होता तो राजे-राजवाड़े अंग्रेज़ो के तलवे ना चाट रहे होते । एक बार एक वार्ता के दौरान मुद्दा उठा की कौन से राज-घराने अंग्रेज़ो के साथ थे , क्या कोई लिखित साक्ष्य है हमारे पास ? एक वरिष्ठ इतिहासकार ने साधारण शब्दो में उत्तर दिया - "भारत भ्रमण पर निकल जाइये , जहाँ कहीं महल - किले साबूत मिलें , उनका वैभव बरक़रार हो , बस समझ जाइयेगा वो अंग्रेज़ो के साथ थे ।" इतिहासकारो में एक कहावत मशहू

Are we getting carried away?

On a micro blogging site, I came across a photograph showing 'a pool of blood on the mid of the road'. You might have also seen that but I found it very interesting as people were claiming it to be shot after recent attack in Baghdad  where more than 200 people lost their lives. I was about to do what almost all of us do ie., reTweet. But I didn't, instead I went to Google reverse search option to check veracity of the image. Well we have so many reverse image search sites like TINEYE  who give a comprehensive report of the images. So what did I found? First, it was not an image of Iraq after the attacks. Second, It was making rounds in social media since 2013 and lastly, I didn't find any credible media house using the image. That image was mostly shared on twitter, facebook or some local blog posts. One of you might argue that that image might be posted by some random social media user ( not aligned to any media house). Yes, there is possibility but the

A leaf from the past ||

एक याद बीते दिनों की  ||   करीब 6 घंटे की कमरतोड़ बस की यात्रा के बाद बहराइच पहुँचा , बस अड्डे पर ही एक दुकान मे चाय पी और हाथ रिक्शा ले चल पड़ा अपने जीवन के नये अध्याय की तरफ. सड़क तो नही पर हाँ तंग गलियाँ कह सकता हूँ जिनसे होकर मेरा रिक्शा चला पड़ा | करीब 15 मिनट की मशक्कत के बाद टीबी हस्पताल चौराहे पर जाम मे अटक गया | अब रास्ता तो पता नहीं था और IDBI बॅंक तो भी कुछ ही महीने हुए थे सो कोई बता भी नहीं पा रहा था | चूँकि पता टीबी हस्पताल के सामने का था सो रिक्शा छोड़ , बैग उठाकर पैदल ही चल पड़ा |   सड़क पार करते ही दाईं तरफ एक दाँत चिकित्सालय है , और उसके बगल एक मोबाइल रीचार्ज की दुकान हुआ करती थी ( अब नही पता है या नहीं) | पहले दाँत वाले से पूछा , निराशा हाथ लगी , फिर जब मोबाइल वाले से पूछा तो बगल मे खड़े एक भाई ने बड़ी कौतूहलता से देखा |   मैने जैसे IDBI का नाम लिया , उसने बात काट दी , अरे सर कुछ काम है क्या बॅंक मे ? उसने छूटते ही अपना जाल फेंका , अकाउंट खोलना है क्या , बताइए ? मुझे समझ आ गया था वो सेल्स टीम मे होगा , ऐसा ही होता है सेल्स वालों के साथ |   खै

असली समाजवाद क्या है ?

एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ , हमारे अगल बगल भी इस कहानी के पात्र मिल जाएंगे अगर आप ध्यान से देखेंगे -   " एक बार एक भिखारी मेरे पास भीख मांगता हुआ आया, "भैया बाबू साहब हुई जाय , कुछ पैसा दय द बाबू " । मेरे पास खुले सिक्के नहीं थे सो झोले में रख सेव बढ़ाते हुए मैंने कहा , पैसा नहीं यही ले लो । भिखारी ने मुंह सिकोडा ," न भैया खाली पैसा दै द" ।  जाने क्यों बरबस ही ख्याल आया की नगद के चक्कर में क्यों है पता किया जाए , मैंने उसे १० रूपये का नोट दिया और वो खुश हो कर आगे बढ़ गया । थोड़ा उसके पीछे चल कर पता चला , वो सीधा पान की दूकान पर गया और मस्त पान-मसाला खरीदा और पुड़िया फाड़ मुंह में मसाला भर लिया "।    उस दिन मैंने कसम खाई की अब कभी भीख नहीं दूंगा , अब भी नहीं देता हूँ ।    खैर कहानी खत्म पैसा हज़म , कुछ ऐसा ही होता है हमारे राजनीति में , है ना ? "कठिन समय और असीमित शक्ति , किसी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी कसौटी है । बढ़िया व्यक्तित्व बेहतर होता जाता है और बद , समय के बदतर होता जाता है ।" इतिहास हमें कई उदहारण देता है | बहुत पुराने

Ram-Navami ke din Poodi Halwa khaenge !

राम-नवमी के दिन पूड़ी-हलवा खाएंगे ॥     "आज का दिन भारी गुजरने वाला था , पता था मुझे मगर फिर भी घर से निकलना था , तलाश में । तलाश भी किसकी ? जिंदगी की , एक किरण की , जो मुझे रास्ता दिखाती भविष्य की । मगर जब सूरज की तपिश से आँखे अंधरा जाए तो फिर कैसा दिन , कैसी रात , हर तरफ धुंधलका ही धुंधलका । मेरे गाँव में सूखा पड़े तीन साल हो गए , अन्न उगना क्या होता है ये धरती भी भुला चुकी थी । कुछ छोटे घास जो हरे काम पीले ज्यादा थे वही समय से लड़ने की हिम्मत दिखा रहे थे । गाँव के तालाब में अब कीचड़ भी न बचा था , पेड़ों की पत्तियां कब की झड़ कर साथ छोड़ गयी थी । गाँव अब गाँव नहीं रह गया था , ये बस एक बियाबान था जहां जिन्दा लाशें घूम रही थी बस इस इंतज़ार में की या तो बारिश हो जाए या फिर मौत ही आ जाए । ख़ैर , मै एक गरीब किसान हूँ , मेरे घर में मेरी माँ , बीवी , तीन बच्चे और दो बैल और दो बीघा जमीन । यही मेरी दुनिया है , यही मेरी संपत्ति । मेरे कई साथी आत्महत्या कर चुके है , कई शायद करने की सोच रहे होंगे । मैं भी सोचता हूँ बीच बीच में , मगर मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा , यही विचार मुझे रो

Patriotism - A difficult Question

आज रविवार की सुबह अख़बार पढ़ते हुए, चाय की चुस्की ले रहा था की मेरी बेटी ने एक सवाल किआ - पापा , देशद्रोह क्या होता है ?   हैरानी की बात है की आज के छोटे बच्चे ऐसे कठिन सवाल पूछ लेते है की बड़े बड़ो की बोलती बंद हो जाए । नया दौर खतरनाक रूप से बुद्धिमान हो गया है , ऐसा लगता है ।    अभी पड़ोस के मिश्रा जी की हालत उनके यहाँ मेहमान आए रिश्तेदार के बच्चे ने ख़राब कर दी , मिश्रा जी अंग्रेजी में थोड़े अपंग है और बच्चा अँगरेज़ , हर सवाल अंग्रेजी में , हर बात अंग्रेजी में , सो मिश्रा जी ने अपने ही घर में जान बचाते फिर रहे थे ।    खैर वापस आता हु आज के सवाल पर - देशद्रोह क्या होता है ?   देश के साथ द्रोह को ही देशद्रोह कहते हैं , बेटी इतना सा उत्तर पाकर खुश हो गई । उसे समझ में क्या आया ये तो पता नहीं मगर इस सवाल ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया ।    चलिए अब ज़रा ध्यान से सोचते है इस विषय पर , क्या विभीषण ने लंका के साथ द्रोह किया था ? क्या जब राणा सांगा ने बाबर को न्यौता भेजा , वो द्रोह नहीं था ? या फिर सांगा के वो साथी जिन्होंने उसे जहर देकर मार डाला , क्या वो द्रोही थे ?   &quo

Naya Zamindar !

बात उन दिनों की है जब  देश नयी आज़ादी के जश्न में डूबा था , जगह जगह तिरंगा फहराया जा रहा था, नया राष्ट्रगान सबको रोमांचित कर रहा था । इन्ही सबके बीच बंगाल के एक पिछड़े गांव शिदीरपुर में चौधरी मोमिनुल हक़ का शासन चल रहा था । चौधरी बड़ी रसूखदार वाला जमींदार था ,  कहते हैं अँगरेज़ भी उनसे अदब से  पेश आते थे । जमींदार का घर गांव के एक छोर पर था , ऊँचे टीले पर महलनुमा एक बड़ा बंगला । सामने एक बड़ा सा तालाब और एक लम्बा अहाता , फिर शुरू होता था बड़ा सा दालान और दो तल्ले का बंगला ।    जमींदार अपने सारे फैसले ऊपरी मंजिल के बरामदे से ही सुनाया करता और गरीब गांववाले उसके हर फैसले को सर आँखों पर लेते ।     कहते है जब अमीरी सीमा पार कर जाए तो दिल गरीब हो जाया करता है , ठीक वैसा ही हुआ चौधरी के साथ । उसके कारिंदे आये दिन गरीब किसानों को परेशान करते , खड़ी फसल काट लिया करते , औरतो के साथ ज्यादती की तो कोई सीमा न थी । देश तो आज़ाद था मगर शिदीरपुर आज भी गुलाम था । समय बीतता गया और साथ ही चौधरी का अत्याचार भी । कहावत है की "जब पाप का घड़ा भर जाए तो कोई मसीहा आता है " और शायद गांव