आज रविवार की सुबह अख़बार पढ़ते हुए, चाय की चुस्की ले रहा था की मेरी बेटी ने एक सवाल किआ - पापा , देशद्रोह क्या होता है ?
हैरानी की बात है की आज के छोटे बच्चे ऐसे कठिन सवाल पूछ लेते है की बड़े बड़ो की बोलती बंद हो जाए । नया दौर खतरनाक रूप से बुद्धिमान हो गया है , ऐसा लगता है ।
अभी पड़ोस के मिश्रा जी की हालत उनके यहाँ मेहमान आए रिश्तेदार के बच्चे ने ख़राब कर दी , मिश्रा जी अंग्रेजी में थोड़े अपंग है और बच्चा अँगरेज़ , हर सवाल अंग्रेजी में , हर बात अंग्रेजी में , सो मिश्रा जी ने अपने ही घर में जान बचाते फिर रहे थे ।
खैर वापस आता हु आज के सवाल पर - देशद्रोह क्या होता है ?
देश के साथ द्रोह को ही देशद्रोह कहते हैं , बेटी इतना सा उत्तर पाकर खुश हो गई । उसे समझ में क्या आया ये तो पता नहीं मगर इस सवाल ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया ।
चलिए अब ज़रा ध्यान से सोचते है इस विषय पर , क्या विभीषण ने लंका के साथ द्रोह किया था ? क्या जब राणा सांगा ने बाबर को न्यौता भेजा , वो द्रोह नहीं था ? या फिर सांगा के वो साथी जिन्होंने उसे जहर देकर मार डाला , क्या वो द्रोही थे ?
"बड़ा कठिन हो जाता है जब सिक्के के दोनों पहलू सामने हो , कौन सही कौन गलत ।"
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यायल में जो हुआ उस पर अगर हम विचार करे तो मिलता है की कैसे एक छोटे से मुद्दे तो राजनितिक रंग दिया जाता है और एक शिक्षा के मंदिर को अखाड़े में तब्दील कर दिया जाता है ।
चलिए मान लेते है की पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे , कश्मीर की आजादी की बात हुई , भारत मुर्दाबाद के नारे लगे । तो क्या ?
क्या हमें सोचने की जरुरत नहीं की ऐसा हुआ क्यों? ऐसा क्या हुआ की ऐसे नारे लगे ? और तो और अभी तक तो ये भी साफ़ नहीं की ऐसा हुआ भी और देशभक्तो की फ़ौज़ ने फैसला भी सुना दिया और सजा भी दे दी ।
किसी ने कहा गोली का जवाब गोली से देंगे , अरे बिलकुल गोली से दो , किसने मना किया है भाई जाओ फ़ौज़ में भर्ती हो जाओ । अगर भुजाये फड़क रही है कुछ कर गुजरने को , जाओ नक्सलियों से भिड़ जाओ ।
अरे कैमरा देख कर नारा बुलंद करने वालो , तुम देश का नुक्सान कर रहे हो , सच कहूँ बोझ हो तुम भारत माँ पर ।
अगर भारत मुर्दाबाद के नारे लगाने वालो को सही करना है तो उनसे बात करो , उन्हें ज्ञान के आधार पर हराओ और ह्रदय परिवर्तन असंभव नहीं ।
आर्यावर्त वह भूमि है जहाँ हिन्दू-दर्शन ही दो परस्पर विरोधी भाग में बंटा हुआ है , आस्तिक और नास्तिक । मुझे नहीं लगता कि चार्वाक सिद्धांत के अनुयायियों पर वैदिक ब्राम्हणो ने हमला किआ होगा । यदि किया भी होगा तो ज्ञान के आधार पर , उनका विरोध हिंसक तो नहीं रहा होगा ।
इसी तरह भारत भूमि पर आदिगुरु शंकराचार्य ने हिंदुत्व को पुनर्जीवित करने के लिए ज्ञान का सहारा लिया । शाश्त्रार्थ किया और हर विरोधी का ह्रदय परिवर्त्तन किया । क्या हमारी राजनीती में कोई है जो शंकराचार्य जैसा विचार करे , जो उनके जैसा कर्म करे ? शायद नहीं ।
चलो शंकराचार्य नहीं बन सकते तो कम से कम तैमूर या औरंगज़ेब जैसे तो न बनो ।
क्या हमारा राष्ट्र इतना कमज़ोर है की कुछ नारो से इसकी जड़े हिल गई , अरे नेतागीरी चमकाने के चक्कर में देश का नुक्सान न कर देना ।
अभिव्यक्ति की आज़ादी क्या सिर्फ सत्ता पक्ष को ही होगी , जिसे चाहो पीट दो और जिसे चाहे सूली पर चढ़ा दो ।
खुलेआम अखण्ड-भारत का राग अलापने वालो , कैसे करोगे अखंड भारत का सपना सच ? क्या पाकिस्तान-अफगानिस्तान पर हमला करोगे , क्या बांग्लादेश पर कब्ज़ा करोगे ?
भारत में रह रहे मुसलमान को तो अपना मान नहीं रहे , पाकिस्तान - अफगानिस्तान - बांग्लादेश को अपने अंदर कैसे समेटोगे ? अरे बेवकूफी की हद है भी या नहीं ।
खैर क्या हर हिन्दू देशभक्त है ? होता तो , भारत हज़ारो साल तक गुलाम नहीं होता ।
मेरे विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने एक बार कहा था , देश के खिलाफ कोई भी कर्म , कितना भी छोटा क्यों ना हो , देशद्रोह होता है । अब चाहे वो देश के शत्रुओ के साथ मिल जाना हो या इनकम टैक्स इस चोरी हो ।
याद रखिये, कोई भी कर्म जो गलत है वो देशद्रोह है , एक दूकान पर बैठा वो दुकानदार जो सेल्स टैक्स की चोरी कर रहा है या फिर वो शक्षक जो छात्रों को सही ज्ञान नहीं दे रहा , दोनों ही देश को कमज़ोर कर रहे है ।
लेकिन हम इसे देशद्रोह नहीं मानते , क्यों? क्योकि हमें अपने अंदर की गंद नहीं दिखती ।
हमारे सारे नेता , कोई इनसे पूछेगा इतनी बड़ी बड़ी गाड़िया, आलिशान मकान कैसे जुगाड़ लेते है वो भी समाजसेवा करके जहा आप के आय का साधन नहीं होता । कोई इन्हे देशद्रोही क्यों नहीं कहता ?
अपना इतिहास खंगालिए और मिलेगा की देशभक्ति भारत में दुर्लभ था , है और रहेगा क्युकी यहाँ हर कोई अपनी जाति , धर्म , प्रान्त और संप्रदाय का भक्त है । देश अभी शैशव काल में है , भारत-भक्ति अभी आई नहीं है और जबरदस्ती आप ला भी नहीं सकते ।
आप भी सोचिये क्या आप देशभक्त हैं या फिर आप सिर्फ भक्त है अपनी सहूलियत के ।
अंग्रेज़ी में बहुत ही उचित कथन है - "Before pointing at someone, check if you are perfect" !
हमें इस छोटी सी बात का ख्याल रखना होगा की देशभक्ति का धर्म नहीं होता , वर्ना मीर जफ़र और जयचंद का नाम एक साथ न लिया जाता ।
बाकी आप खुद ही समझदार हैं....
It's all politics of convenience.
ReplyDelete@Soumabrata -
ReplyDeleteYes, this game of convenience is toying with the idea of India.
Nonetheless, thanks for reading.
It requires courage to do what is right than to do what is convenient. Unfortunately we are lacking such courage.
ReplyDeleteWe are still in process to build a nation.
ReplyDelete@Navneet , absolutely. But this building needs expert architects and engineers, what we have got are unskilled labourers and contractors busy in making their cut.
ReplyDeleteHard to accept but true.nice blog.Ab deshdrohiyo ki bheed me tum b shamil ho gaye vinod ;P ;p
ReplyDeleteha ha ha , ab yahi din dekhna baaki reh gya tha!
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