बात उन दिनों की है जब देश नयी आज़ादी के जश्न में डूबा था , जगह जगह तिरंगा फहराया जा रहा था, नया राष्ट्रगान सबको रोमांचित कर रहा था ।
इन्ही सबके बीच बंगाल के एक पिछड़े गांव शिदीरपुर में चौधरी मोमिनुल हक़ का शासन चल रहा था । चौधरी बड़ी रसूखदार वाला जमींदार था , कहते हैं अँगरेज़ भी उनसे अदब से पेश आते थे ।
जमींदार का घर गांव के एक छोर पर था , ऊँचे टीले पर महलनुमा एक बड़ा बंगला । सामने एक बड़ा सा तालाब और एक लम्बा अहाता , फिर शुरू होता था बड़ा सा दालान और दो तल्ले का बंगला ।
जमींदार अपने सारे फैसले ऊपरी मंजिल के बरामदे से ही सुनाया करता और गरीब गांववाले उसके हर फैसले को सर आँखों पर लेते ।
कहते है जब अमीरी सीमा पार कर जाए तो दिल गरीब हो जाया करता है , ठीक वैसा ही हुआ चौधरी के साथ । उसके कारिंदे आये दिन गरीब किसानों को परेशान करते , खड़ी फसल काट लिया करते , औरतो के साथ ज्यादती की तो कोई सीमा न थी । देश तो आज़ाद था मगर शिदीरपुर आज भी गुलाम था ।
समय बीतता गया और साथ ही चौधरी का अत्याचार भी । कहावत है की "जब पाप का घड़ा भर जाए तो कोई मसीहा आता है " और शायद गांव में मसीहा आ चुका था ।
देश का विभाजन हुआ और पूर्वी -पाकिस्तान से हिन्दू बंगाल में खदेड़ दिए गए , उन्ही विस्थापितों में एक था मदन घोष । मदन शिक्षित था और स्वंतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा ले चुका था । विचारो से निर्भीक , शारीरिक रूप से बलवान मदन गांव में आते ही चहेता बन गया ।
जब उसने जमींदार का अत्याचार देखा तो उससे रहा न गया और उसने चौधरी से मिलने का मन बना लिया ।
जमींदार का बंगला देख मदन की आँखे फटी की फटी रह गई, क्या शानोशौकत , क्या आराम वाह ।
तभी एक कारिंदा आया और उसके आने का कारण पूछा । जमींदार से मिलने की बात सुनकर वो हँसा और बोला की चौधरी किसी से अकारण नहीं मिलते और उस जैसे गरीब से तो बिलकुल नहीं । फिर भी मदन अड़ा रहा और हारकर कारिंदे तो जमींदार तक खबर पहुचनी पड़ी ।
लम्बे इंतज़ार के बाद उसे मिलने की अनुमति मिली मगर वो भी कैसे , जमींदार पहले तल्ले पर बरामदे में रहेंगे और मदन मैदान में । बात अटपटी थी मगर गरीब का अपमान ही अमीरी कहलाती थी ।
थोड़े देर बाद मदन को निश्चित स्थान पर खड़ा किया गया और जमींदार ऊपर बरामदे पर आया ।
रोबीला चेहरा , लम्बाई करीब साढ़े छह हाथ की होगी , बड़ी दाढ़ी और रेशमी कपडे में चौधरी का रौब और बढ़ गया था ।
मदन ने अपनी बात रक्खी और जमींदार ने पूरी बात सुनी भी । बात खत्म हो जाने के बाद जो होना था वही हुआ , कुछ कारिंदे और लठैत आये और मदन को पीटते - घसीटते बाहर फेंक आये । जमींदार अपने बरामदे से तमाशे को देखता रहा जैसे किसी खेल का आनंद ले रहा हो ।
गांव वालो को जब पता चला तो उसे उठा कर वैद्य के पास ले गए , कुछ दिनों के बाद मदन चलने फिरने लायक हो गया । शरीर तो चोटिल था , घाव भी भर गए मगर उसके दिल का घाव रह रह कर बदला लेने को उकसाता ।
अत्याचार बढ़ने की वजह से गांव वाले भी उपाय तलाश रहे थे और इसी भावना को हवा देकर मदन उनका नेता बन गया । पढ़ा लिखा मदन जानता था की क्रांति के लिए शक्ति और युक्ति दोनों की आवश्यकता होगी सो उसने लडको की एक टुकड़ी बनाई ।
योजनाबद्ध तरीके से जमींदार के बंगले पर हमला किया गया , कुछ कारिंदे मारे गए और मदन के लड़ाके भी । अंत में जमींदार ने हथियार डाल दिए मगर मदन का बदला कैसे पूरा होता सो जमींदार को मौत के घाट उतार दिया गया ।
गांव वाले अब आज़ाद हो गए थे , खूब खुशियां मनाई गयी , मिठाई बंटी जैसे समय से पहले दुर्गा पूजा आ गई हो ।रात भर गांव वाले नाचते - गाते रहे और सुनहरे भविष्य की बात में मगन रहे ।
तड़के ही कुछ लठैत आये और पूरे गांव को जमींदार के बंगले पर इकठ्ठा होने की मुनादी कर गए । गांव वाले भी ख़ुशी के मारे दौड़ पड़े की अब तो बंगले पर अपना कब्ज़ा है ।
जब पहुंचे तो देखा कारिंदे अब भी वही हैं , कुछ कौतुहल हुआ मगर लठैतों ने सब को मैदान में खड़ा किया और लाठी के दम पर शांत किया ।
कुछ देर बाद पहले तल्ले के बरामदे पर एक साया नज़र आया ,, रोबीला चेहरा, लम्बाई होगी कोई छह हाथ की , रेशमी कपड़ो में रौब और ज्यादा लग रहा था.....।
गांव वालो की आँखों के सामने था शिदीरपुर गांव का नया जमींदार - मदन घोष ।
......it will continue or this is all?????
ReplyDeleteHi , Thanks for reading !
ReplyDeleteThis is all in this short story.
Rgds,
Vinod