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असली समाजवाद क्या है ?

एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ , हमारे अगल बगल भी इस कहानी के पात्र मिल जाएंगे अगर आप ध्यान से देखेंगे -   " एक बार एक भिखारी मेरे पास भीख मांगता हुआ आया, "भैया बाबू साहब हुई जाय , कुछ पैसा दय द बाबू " । मेरे पास खुले सिक्के नहीं थे सो झोले में रख सेव बढ़ाते हुए मैंने कहा , पैसा नहीं यही ले लो । भिखारी ने मुंह सिकोडा ," न भैया खाली पैसा दै द" ।  जाने क्यों बरबस ही ख्याल आया की नगद के चक्कर में क्यों है पता किया जाए , मैंने उसे १० रूपये का नोट दिया और वो खुश हो कर आगे बढ़ गया । थोड़ा उसके पीछे चल कर पता चला , वो सीधा पान की दूकान पर गया और मस्त पान-मसाला खरीदा और पुड़िया फाड़ मुंह में मसाला भर लिया "।    उस दिन मैंने कसम खाई की अब कभी भीख नहीं दूंगा , अब भी नहीं देता हूँ ।    खैर कहानी खत्म पैसा हज़म , कुछ ऐसा ही होता है हमारे राजनीति में , है ना ? "कठिन समय और असीमित शक्ति , किसी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी कसौटी है । बढ़िया व्यक्तित्व बेहतर होता जाता है और बद , समय के बदतर होता जाता है ।" इतिहास हमें कई उदहारण देता है | बहुत पुराने

नई सुबह का इंतज़ार फिर से है |

तुमने ठोकर सिर्फ मुझे नहीं मारा, ये ठोकर है हर उस गरीब को जो सपने देखता है अच्छे कल के । ये ठोकर है हर उस मजबूर को , जो हर सुबह उठ कर बस यही सोचता है के आज कुछ पैसे कमा लूँ  ताकि शाम को भूखा न सोना पड़े । ये ठोकर है हर उस उम्मीद को, जो उठती है मेरे साथ हर सुबह, मेहनत करती है पसीना बहाती है दिन भर और फिर थक कर दम तोड़ देती है हर शाम । पर हर सुबह फिर से आ जाती है मेरे पास , नई उम्मीद बन कर । मगर आज की ठोकर के बाद लगता नहीं की फिर से ऐसी सुबह आएगी । तुमने कहा की मै सड़क पर बैठा था जो गैरकानूनी है , सच कहा तुमने, मै तो भूल ही गया था , इस सड़क पर सिर्फ बईमान ही दूकान लगा सकते हैं , मगर मै बूढा ये समझ न पाया । बाप की उम्र का सही , गुस्सा था तो अरे दो - चार थप्पड़ ही मार लेते । हाथ जोड़े, विनती भी की, मगर तुम न माने और मार दिया  ठोकर मेरी जिंदगी को । तुमने सिर्फ टाइप-राइटर नहीं तोडा, तुमने तोडा है मेरा आज , मेरे आने वाले कल को । ये जो टुकड़े पड़े हैं ना, ये रिबन-नट-बोल्ट-स्पोक्स नहीं है, ये टुकड़े है मेरी दवा की शीशी की , ये टुकड़े है मेरे खाने के , ये टुकड़े है मेरी हर उस जरुरत की जो मुझे ज़ि

Doctors Dilemma - Professional Integrity

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