तुमने ठोकर सिर्फ मुझे नहीं मारा, ये ठोकर है हर उस गरीब को जो सपने देखता है अच्छे कल के ।
ये ठोकर है हर उस मजबूर को , जो हर सुबह उठ कर बस यही सोचता है के आज कुछ पैसे कमा लूँ ताकि शाम को भूखा न सोना पड़े ।
ये ठोकर है हर उस उम्मीद को, जो उठती है मेरे साथ हर सुबह, मेहनत करती है पसीना बहाती है दिन भर और फिर थक कर दम तोड़ देती है हर शाम । पर हर सुबह फिर से आ जाती है मेरे पास , नई उम्मीद बन कर ।
मगर आज की ठोकर के बाद लगता नहीं की फिर से ऐसी सुबह आएगी ।
तुमने कहा की मै सड़क पर बैठा था जो गैरकानूनी है , सच कहा तुमने, मै तो भूल ही गया था , इस सड़क पर सिर्फ बईमान ही दूकान लगा सकते हैं , मगर मै बूढा ये समझ न पाया ।
बाप की उम्र का सही , गुस्सा था तो अरे दो - चार थप्पड़ ही मार लेते । हाथ जोड़े, विनती भी की, मगर तुम न माने और मार दिया ठोकर मेरी जिंदगी को ।
तुमने सिर्फ टाइप-राइटर नहीं तोडा, तुमने तोडा है मेरा आज , मेरे आने वाले कल को । ये जो टुकड़े पड़े हैं ना, ये रिबन-नट-बोल्ट-स्पोक्स नहीं है, ये टुकड़े है मेरी दवा की शीशी की , ये टुकड़े है मेरे खाने के , ये टुकड़े है मेरी हर उस जरुरत की जो मुझे ज़िंदा रखते है ।
इन बूढी हड्डियों को कोई गिला नहीं तुमसे, बस ऐसा लग रहा है जैसे मै हार गया । जिस हौसले को गरीबी न तोड़ पायी, तुम्हारी एक ठोकर ने तोड़ डाला । वाह कमाल कर दिया तुमने ।
शाम होते होते कप्तान साहब आये, नया टाइप-राइटर दिया और थोड़ा हौसला भी , शुक्रिया ।
इस अँधेरे में फिर से नयी रौशनी दिखी है , नई सुबह का इंतज़ार फिर से है ।
ये आखिरी दांव है, आ फिर से शुरू करते है ,
गिरूंगा , उठूंगा , उठ के फिर लड़ूंगा ॥
ऐ जिंदगी , तू कितना भी ताकतवर सही ,
पुराना खिलाडी हु मै , तू हरा नहीं सकता मुझे
मेरी जिंदगी ही मेरी हार है , रोज़ आऊंगा लड़ने ,
और जिस दिन मै न आया, समझ लेना मै जीत गया ॥
- विनोद त्रिपाठी
ये ठोकर है हर उस मजबूर को , जो हर सुबह उठ कर बस यही सोचता है के आज कुछ पैसे कमा लूँ ताकि शाम को भूखा न सोना पड़े ।
ये ठोकर है हर उस उम्मीद को, जो उठती है मेरे साथ हर सुबह, मेहनत करती है पसीना बहाती है दिन भर और फिर थक कर दम तोड़ देती है हर शाम । पर हर सुबह फिर से आ जाती है मेरे पास , नई उम्मीद बन कर ।
मगर आज की ठोकर के बाद लगता नहीं की फिर से ऐसी सुबह आएगी ।
तुमने कहा की मै सड़क पर बैठा था जो गैरकानूनी है , सच कहा तुमने, मै तो भूल ही गया था , इस सड़क पर सिर्फ बईमान ही दूकान लगा सकते हैं , मगर मै बूढा ये समझ न पाया ।
बाप की उम्र का सही , गुस्सा था तो अरे दो - चार थप्पड़ ही मार लेते । हाथ जोड़े, विनती भी की, मगर तुम न माने और मार दिया ठोकर मेरी जिंदगी को ।
तुमने सिर्फ टाइप-राइटर नहीं तोडा, तुमने तोडा है मेरा आज , मेरे आने वाले कल को । ये जो टुकड़े पड़े हैं ना, ये रिबन-नट-बोल्ट-स्पोक्स नहीं है, ये टुकड़े है मेरी दवा की शीशी की , ये टुकड़े है मेरे खाने के , ये टुकड़े है मेरी हर उस जरुरत की जो मुझे ज़िंदा रखते है ।
इन बूढी हड्डियों को कोई गिला नहीं तुमसे, बस ऐसा लग रहा है जैसे मै हार गया । जिस हौसले को गरीबी न तोड़ पायी, तुम्हारी एक ठोकर ने तोड़ डाला । वाह कमाल कर दिया तुमने ।
शाम होते होते कप्तान साहब आये, नया टाइप-राइटर दिया और थोड़ा हौसला भी , शुक्रिया ।
इस अँधेरे में फिर से नयी रौशनी दिखी है , नई सुबह का इंतज़ार फिर से है ।
ये आखिरी दांव है, आ फिर से शुरू करते है ,
गिरूंगा , उठूंगा , उठ के फिर लड़ूंगा ॥
ऐ जिंदगी , तू कितना भी ताकतवर सही ,
पुराना खिलाडी हु मै , तू हरा नहीं सकता मुझे
मेरी जिंदगी ही मेरी हार है , रोज़ आऊंगा लड़ने ,
और जिस दिन मै न आया, समझ लेना मै जीत गया ॥
- विनोद त्रिपाठी
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