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Independence - Half or Full ?

स्वंतंत्रता - अधूरी या पूरी ? *********************************************************************************** ॥ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥  जब स्वयं नारायणावतार भगवान् श्रीराम ने ये कहा था तब महाजनपद होते थे और तथाकथित अखंड भारत हुआ करता था जिसे कहीं इतिहासकारों ने आर्यावर्त का नाम दिया । तब और अब में हज़ार वर्षों का बड़ा अंतर है और मानव मूल्यों में भी अनंत परिवर्तन आया हैं । आज भौतिक मूल्य , मानव-मूल्य भर भारी पड़ चूका है और सब सुख-दुःख धन के परिपेक्ष में देखा जाता है । यदि धन लोलुपता न होती तो कोई भी हिन्दू मुस्लमान आक्रमणकारियों का साथ न देता , यही धन-वैभव का लोभ ना होता तो राजे-राजवाड़े अंग्रेज़ो के तलवे ना चाट रहे होते । एक बार एक वार्ता के दौरान मुद्दा उठा की कौन से राज-घराने अंग्रेज़ो के साथ थे , क्या कोई लिखित साक्ष्य है हमारे पास ? एक वरिष्ठ इतिहासकार ने साधारण शब्दो में उत्तर दिया - "भारत भ्रमण पर निकल जाइये , जहाँ कहीं महल - किले साबूत मिलें , उनका वैभव बरक़रार हो , बस समझ जाइयेगा वो अंग्रेज़ो के साथ थे ।" इतिहासकारो में एक कहावत मशहू

Ram-Navami ke din Poodi Halwa khaenge !

राम-नवमी के दिन पूड़ी-हलवा खाएंगे ॥     "आज का दिन भारी गुजरने वाला था , पता था मुझे मगर फिर भी घर से निकलना था , तलाश में । तलाश भी किसकी ? जिंदगी की , एक किरण की , जो मुझे रास्ता दिखाती भविष्य की । मगर जब सूरज की तपिश से आँखे अंधरा जाए तो फिर कैसा दिन , कैसी रात , हर तरफ धुंधलका ही धुंधलका । मेरे गाँव में सूखा पड़े तीन साल हो गए , अन्न उगना क्या होता है ये धरती भी भुला चुकी थी । कुछ छोटे घास जो हरे काम पीले ज्यादा थे वही समय से लड़ने की हिम्मत दिखा रहे थे । गाँव के तालाब में अब कीचड़ भी न बचा था , पेड़ों की पत्तियां कब की झड़ कर साथ छोड़ गयी थी । गाँव अब गाँव नहीं रह गया था , ये बस एक बियाबान था जहां जिन्दा लाशें घूम रही थी बस इस इंतज़ार में की या तो बारिश हो जाए या फिर मौत ही आ जाए । ख़ैर , मै एक गरीब किसान हूँ , मेरे घर में मेरी माँ , बीवी , तीन बच्चे और दो बैल और दो बीघा जमीन । यही मेरी दुनिया है , यही मेरी संपत्ति । मेरे कई साथी आत्महत्या कर चुके है , कई शायद करने की सोच रहे होंगे । मैं भी सोचता हूँ बीच बीच में , मगर मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा , यही विचार मुझे रो